रिपोर्ट गुड्डू यादव
स्वतंत्र पत्रकार विजन
गाजीपुर। अध्यात्म जगत में तीर्थस्थल के रूप में स्थापित 750 वर्ष प्राचीन सिद्धपीठ हथियाराम मठ के 26वें पीठाधिपति एवं जूना अखाड़ा के वरिष्ठ महामंडलेश्वर स्वामी भवानीनन्दन यति जी महाराज इन दिनों अपना चातुर्मास महानुष्ठान संपादित कर रहे हैं। पंडित विनोद उपाध्याय के आचार्यत्व में वैदिक विद्वान ब्राह्मणों के समूह द्वारा किए जा रहे शिवोपासना से समूचे अंचल का माहौल भक्तिमय बना हुआ है। पुण्य लाभ की कामना के साथ जनपद ही नहीं देश के कोने कोने से शिष्य श्रद्धालु यहां पहुंचकर भाद्रपद पूर्णिमा तक चलने वाले इस महानुष्ठान का हिस्सा बनने के साथ ही बुढ़िया माता का दर्शन पूजन कर रहे हैं।
चातुर्मास की व्याख्या करते हुए महामंडलेश्वर स्वामी भवानीनन्दन यति महाराज ने बताया कि चातुर्मास, सनातन वैदिक धर्म में आहार, विहार और विचार के परिष्करण का समय है। चातुर्मास संयम और सहिष्णुता की साधना करने के लिए प्रेरित करने वाला समय है। इसका धार्मिक महत्व ही नहीं, वरन इस दौरान तप, शास्त्राध्ययन एवं सत्संग आदि करने का तो विशेष महत्व है। इसके सभी नियम सामाजिक, सांस्कृतिक और व्यावहारिक दृष्टि से भी बड़े उपयोगी हैं। चातुर्मास धर्म, परम्परा, संस्कृति और स्वास्थ्य को एक सूत्र में पिरोने वाला समय माना जाता है। चातुर्मास संयम को साधने का संदेश देता है। बढ़ती असंवेदनशीलता के समय में संयम की यह साधना और भी आवश्यक हो जाती है। संयमित आचरण से हम न केवल मन को वश में करना सीखते हैं, बल्कि हमें धैर्य और समझ भरा व्यवहार करना भी आता है। उन्होंने बताया कि चातुर्मास ऐसा अवसर है, जिसमें हम खुद अपने ही नहीं औरों के अस्तित्व को भी स्वीकार कर उसे सम्मान देने के भाव को जीते हैं। चातुर्मास हमें मन के वेग को संयम की रस्सी से बांधने की प्रेरणा देता है। कहा कि स्वास्थ्य की देखभाल और जागरूकता के लिए भी चातुर्मास का बड़ा महत्व है। चातुर्मास धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि आरोग्य विज्ञान व सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति को यदि हम केवल तीन शब्दों में कहना या बताना चाहें तो इसका मतलब अर्पण, तर्पण और समर्पण है। इन तीनों में ही त्याग की भावना समाहित है। यह त्याग समाज के लिए कर्तव्यरूप है, उपकाररूप नहीं। हम किसी पर उपकार नहीं करते, बल्कि यह हमारा कर्तव्यरूप है। हमारे द्वारा किया गया यह त्याग ही अर्पण कहलाता है। पितरों के लिए, माता पिता के लिए किया गया त्याग तर्पण कहलाता है। भगवान के लिए किया गया त्याग समर्पण कहलाता है। हमारा कर्तव्य है कि जिस समाज में हम रह रहे हैं, उस समाज के लिए कुछ करें। कर्तव्य वह कर्म है जिसको करने से पुण्य नहीं मिलता, लेकिन ना करने से पाप जरूर लगता है। उन्होंने कहा कि सिद्धपीठ हथियाराम मठ स्थित मृणमयी बुढ़िया माई के पुण्य प्रताप से यहां की माटी चंदन से भी पवित्र है। इस पवित्र भूमि पर किए गए धार्मिक अनुष्ठान से मन को शांति मिलती है।
गौरतलब है कि सिद्धपीठ के पीठाधीश्वर व जूना अखाड़े के वरिष्ठ महामंडलेश्वर स्वामी भवानीनंदन यति जी महाराज द्वारा सिद्धपीठ की गद्दी पर आसीन होने के बाद सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, नागेश्वर महादेव, त्रयम्बकेश्वर महादेव, घृष्णेश्वर महादेव, भीमाशंकर महादेव, ओम्कारेश्वर, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, बाबा विश्वनाथ, रामेश्वरम, मल्लिकार्जुन महादेव, केदारनाथ महादेव, बाबा वैद्यनाथ देवधर, परली वैद्यनाथ व नेपाल स्थित पशुपतिनाथ के प्रांगण के साथ ही देश के कोने-कोने में स्थित देवाधिदेव भूत भावन भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग स्थानों पर लगातार चातुर्मास महायज्ञ संपादित किए हैं। फिलहाल विगत वर्षों से चातुर्मास महायज्ञ का संपादन सिद्धपीठ हथियाराम मठ से ही किया जा रहा है। इस वर्ष भी धार्मिक रीति नीति अनुसार लगातार दो माह तक चलने वाले इस अनुष्ठान के दौरान नागपंचमी, रक्षाबंधन, कृष्ण जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी सहित सभी विशेष पर्व और त्योहार पर विशेष पूजन अर्चन किया जायेगा।