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संसार के समस्त योगों में सर्वश्रेष्ठ हैं भक्ति योग भक्ति योग का मार्ग हमें अपने उद्देश्य की ओर सीधा और सुरक्षित पहुंचा देता है….. स्वामी जय गुरुबंदे जी महाराज

रिपोर्ट गुड्डू यादव
स्वतंत्र पत्रकार विजन

गाजीपुर। संसार में जितने भी प्रकार का योग है उसमें भक्ति योग सर्वोत्तम सहज और श्रेष्ठ है । समस्त योगो का जन्म भारत जैसे धर्म प्रधान देश में महात्माओं के द्वारा हुआ है जिनमें कुछ प्रमुख योग जैसे कर्म योग ,ज्ञान योग, राज योग , हठ योग, मंत्र योग, क्रिया योग, सूक्ष्म योग, सुरति योग ,शब्द योग एवं भक्ति योग इत्यादि प्रमुख है। इसके अलावा भी तमाम प्रकार की योग हैं- लय योग,तारक योग, अष्टाग योग जिसमें ध्यान, धारणा, समाधि, यम, नियम, आसन, प्राणायाम, व्यायाम लेकिन जितने भी योग हैं वह सब आम जनमानस के लिए सरल नहीं रहता है परंतु भक्ति योग आसान होता है क्योंकि इसमें शरीर के अष्ट चक्र को जगा कर तपाना नहीं पड़ता है और न ही कोई कठिन साधना करने की जरूरत है । वैसे तो योग के द्वारा कई प्रकार की सिद्धियां प्राप्त की जाती है जिसे प्राप्त हो जाने पर मानव के भीतर अहंकार का जन्म हो जाता है जो सीधे नर्क का द्वार खोल देता है। कुछ योग ऐसे हैं जो असफल होने पर दिमाग से विक्षिप्त कर देते हैं लेकिन भक्ति योग में ऐसा कोई बांधा नहीं आता है, बस किसी तत्वदर्शी महापुरुष के सानिध्य में रहकर उनके द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों का अपने गृहस्थ आश्रम में रहते हुए पालन करना ही भक्ति योग कहलाता है अर्थात गुरु वचन का पालन करते हुए उनके अनुसार जीवन यापन करने से मानव पहले भक्त बनता है तब उस मानव से भक्ति सहज में होने लगती है और उसके मनोवृति एवं चित्रवृति के द्वारा उत्पन्न विषयों का संपूर्ण नाश हो जाता है और मानव शरीर के समस्त चक्र खिल जाते हैं , नाडियां शुद्ध होकर शरीर को पूर्ण रूप से निरोग करके आत्मा को परमात्मा से साक्षात्कार करा देता है एवं जन्म जन्मांतरों का पाप परमपिता परमात्मा का परम प्रकाशित रूप के प्रताप से जल जाते हैं एवं दैहिक, दैविक ,भौतिक ताप का भी दमन कर देता है। आत्मा परमानंद का प्राप्ति करके संसार सागर से तरकर अमर हो जाता है। इसलिए स्वामी जय गुरु वंदे जी का कहना है की हर मानव को संत महापुरुषों का संगत करके भक्ति के माध्यम से जन्म मरण के चक्र से निजात पाकर अपने जीवन को सफल करके इस लोक से परलोक में जाना चाहिए क्योंकि इसी के लिए जीव को ईश्वर ने मनुष्य तन में भेजा है। इस अनमोल अवसर को वासना एवं कामना में फंसा कर गवाना नहीं चाहिए, नहीं तो अंत समय में पश्चाताप ही करना पड़ेगा। ऐसा मानव तन जीव को बार-बार नहीं मिलता है ।इसलिए गोस्वामी जी ने मानस में दर्शाया है कि-
प्रथम भक्ति संतन कर संगा,
दूसर मम रति कथा प्रसंगा।
भक्ति तात अनुपम सुख मूला,
मिलहि जो संत होय अनुकूला।

स्वामी जय गुरुबंदे जी अपने राखी में कहते हैं –

संत बिना भक्ति नहीं, भक्त बना नहीं कोय।
भक्त बना सो जय गुरुबंदे ,संत शरण में होय ।।
गुरु भक्ति सब ना करें, करे सो जग में वीर ।
मिला प्रभु से जय गुरुबंदे, लगा निशाना तीर ।।
भक्ति पथ पे जो चला, हुआ पाप का अन्त ।
जाना घर में जय गुरुबंदे भक्ति
दाता संत ।।

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