Sunday, May 19, 2024
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तकनीक द्वारा आयस्टर मशरूम उत्पादन से किसानों की आय होगी दुगुनी

रिपोर्ट गुड्डू यादव
स्वतंत्र पत्रकार विजन

गाजीपुर। पी० जी० कालेज गाजीपुर में पूर्व शोध प्रस्तुत संगोष्ठी का आयोजन किया गया यह संगोष्ठी महाविद्यालय के अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ तथा विभागीय शोध समिति के तत्वावधान में महाविद्यालय के सेमिनार हाल में सम्पन्न हुई, जिसमें महाविद्यालय के प्राध्यापक, शोधार्थी व छात्र- छात्राएं उपस्थित रहे। उक्त संगोष्ठी मे पादप रोग विज्ञान विभाग के शोधार्थी दीपक कन्नौजिया ने अपने शोध प्रबंध विंध्याचल भूभाग के वनोत्पाद एवं पोषण मूल्यों के साथ साथ पादप परजीवी सूत्रकृमियो को प्रतिबंधित करने की योग्यता के लिए प्लूरोटस प्रजातियों का अध्ययन नामक विषय पर अपना शोध प्रबंध प्रस्तुत किया।दीपक कन्नौजिया ने बताया कि मशरूम उत्पादन हेतु फसलों के अवशेष जैसे गेंहू का भूसा, धान का पुआल,मक्का के तने, गन्ने की खोई आदि का प्रयोग किया है, किसान इसे बेकार समझकर अपने खेत मे जला देते है या फेंक देते है मशरूम उत्पादन की आयस्टर विधि में फसलों के अवशेष जैसे गेंहू का भूसा, धान का पुआल,मक्का के तने, गन्ने की खोई को प्रयोग में लाकर मशरूम उत्पादन किया जाता है ,यदि किसान मशरूम उत्पादन की इस विधि को अपनाते है तो अपनी आय दो गुना कर सकते है, सरकार भी किसानों की दो गुनी आय के लिए प्रयासरत है। किसानों व युवाओं को रोजगार एवम आय में वृद्धि होगी। दीपक ने बताया प्रथम उपज 25 से 27 दिनों के भीतर ही मिलनी शुरू हो जाती है। ओयस्टर की विभिन्न प्रजातियों में से प्लूरोटस ऑस्ट्रियाटस सबसे अच्छी उत्पादन करने वाली प्रजाति है।एक बैग से लगभग 394.66 ग्राम मशरूम का उत्पादन/प्रथम उपज का प्राप्त हुआ मशरूम की स्पानिंग करने के 14 दिन माइसेलियम रन करने लगती है 20 दिन में पिनहेड निकलने लगते है प्रथम उपज 25 वें दिन से प्राप्त होने लगती है दितीय उपज 35 वें दिन में , त्रितीय उपज 45वें दिन और चौथी उपज 60 वें दिन में मिल जाती है। मशरूम उत्पादन की तकनीक बहूत प्रभाव शाली है जिसमें फसलों के अवशेष ,अनुपयोगी जानवरों का गोबर आदि प्रयोग में लाया जाता है। परजीवी नेमोटोड मारने की क्षमता एवम मशरूम उत्पादन के बाद बचे हुए अवशेष पदार्थ का उपयोग सघन खेती के लिए प्रयोग किया जा सकता है। मशरूम पोषण एवं खनिजों से भरपूर है।
शोध प्रबंध प्रस्तुतिकरण के बाद विभागीय शोध समिति व अनुसंधान एवं विकास समिति के सदस्यों , प्राध्यापकों तथा शोध छात्रों द्वारा शोध पर विभिन्न प्रकार के प्रश्न पूछे गए जिनका शोधार्थी ने संतुष्टिपूर्ण एवं उचित उत्तर दिया। उसके तत्पश्चात समिति एवं महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफे०(डॉ०) राघवेन्द्र कुमार पाण्डेय ने शोध प्रबंध को विश्वविद्यालय में जमा करने की संस्तुति प्रदान किया।
इस संगोष्ठी में महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफे० (डॉ०) राघवेन्द्र कुमार पाण्डेय, अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ के संयोजक प्रोफे० (डॉ०) जी० सिंह, मुख्य नियंता प्रोफे० (डॉ०) एस. डी० सिंह परिहार, शोध निर्देशक डॉ० योगेश कुमार,पादप रोग विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफे०(डॉ०) सत्येंद्र नाथ सिंह, प्रोफे० (डॉ०)अरुण कुमार यादव, डॉ० रामदुलारे, डॉ० कृष्ण कुमार पटेल, डॉ०हरेंद्र सिंह, डॉ० रविशेखर सिंह एवं महाविद्यालय के प्राध्यापकगण तथा शोध छात्र छात्रएं आदि उपस्थित रहे। अंत में अनुसंधान एवं विकास प्रोकोष्ठ के संयोजक प्रोफे०(डॉ०) जी० सिंह ने सबका आभार व्यक्त किया।

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