रिपोर्ट गुड्डू यादव
स्वतंत्र पत्रकार विजन
गाजीपुर। जीवित्पुत्रिका का व्रत धुमधाम के साथ मनाया जाता हॆ यह पर्व सबसे कठिन माना जाता हॆ। निर्जला रह कर महिलाएं पुत्र के दीर्घायु होने की कामना को लेकर व्रत धारण कर पूजन-अर्चन कर कथा सुनने की परम्परा हॆ। यह व्रत सबसे कठिन माना जाता हॆ। कहा जाता हॆ कि महाभारत काल में गुरु द्रौणाचार्य पुत्र अश्वस्थामा ने अंर्जुन के पुत्रवधु उत्तरा के गर्भ को नष्ट करने हेतु ब्रह्मास्त्र चलाया। उत्तरा समर्पित कृष्ण भक्त थी, उन्होंने श्रीकृष्ण और माता रुक्मणी(लक्ष्मी) का ध्यान किया और गर्भस्थ शिशु की रक्षार्थ प्रार्थना की। श्रीकृष्ण ने ब्रह्मास्त्र रोका और माँ आदिशक्ति सन्तान लक्ष्मी ने उत्तरा के गर्भ को अंदर से सुरक्षा कवच से ढँक दिया। जिस ब्रह्मास्त्र का पूरे ब्रह्माण्ड में कोई रोक नहीं सकता है, इसलिए उसका मान रखने हेतु ब्रह्मास्त्र ने उत्तरा का गर्भ नष्ट किया और पुनः उस गर्भ को भगवान कृष्ण और माँ आद्यशक्ति सन्तान लक्ष्मी ने जीवीत किया। इसलिए इस घटनाक्रम को जीवित्पुत्रिका कहा गया। पांडवो और उत्तरा ने भगवान कृष्ण और आद्यशक्ति सन्तान लक्ष्मी की स्तुति की। प्रशन्न होने पर उत्तरा ने कहा, माँ आद्यशक्ति सन्तान लक्ष्मी और जगत का पालन करने वाले कृष्ण रूप भगवान विष्णु से प्रार्थना किया क़ि, इस दिन की याद में जो पुत्रवती स्त्री आपका व्रत और तीन दिन का अनुष्ठान करें, उनके पुत्र को मेरे पुत्र की तरह आप संरक्षण प्रदान करें।