स्वतंत्र पत्रकार विजन
संवाददाता
हावडा,शंरामराजातल्ला,पश्चिम बंगाल गोध्वज स्थापना भारत यात्रा के 12वें दिन आज आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तदनुसार दिनांक तीन अक्टूबर को पश्चिम बंगाल के प्रमुख महानगर हावडा के अति प्राचीन शंकरमठ में विधिविधान से पूजा करने के बाद परमाराध्य परमधर्माधीष उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दःउ सरस्वती ‘१००८’ जी महाराज के कर कमलों से “गोप्रतिष्ठा ध्वज” को स्थापित किया गया ।
ध्यातव्य हो कि पूज्य शंकराचार्य जी महाराज गोमाता को राष्ट्रमाता घोषित कराने के लिए पिछले २२ सितम्बर २०२४ को अयोध्या धाम में पहुंचकर रामकोट की परिक्रमा कर इस यात्रा की शुरुआत की थी, ये ऐतिहासिक यात्रा पूर्वोत्तर के प्रायः सभी राज्यों में जाकर गोप्रतिष्ठा ध्वज की स्थापना कर चुकी ।
इस ऐतिहासिक यात्रा को विगत दिनों तब एक बडी सफलता मिली जब पूज्यपाद शंकराचार्य जी महाराज के निर्देश पर महाराष्ट्र सरकार के मुख्यमंत्री एकनाथ सम्भा शिन्दे ने देसी (रामा) गाय को राज्यमाता घोषित करके केबिनेट की प्रस्ताव की कापी शंकराचार्य के चरणों में सौंपा ।
पूज्य शंकराचार्य महाराज इस ऐतिहासिक यात्रा के माध्यम से भारत भूमि की ऊपर से सम्पूर्णतया गौहत्या का कलंक मिटाकर गोमाता को राष्ट्रमाता घोषित कराने के लिए है ।
आज शक्तिपूजा की भूमि पश्चिमबंगाल में नवरात्रि के पहले दिन शंकर मठ में गोप्रतिष्ठा ध्वज की स्थापना करके अपने को दृढसंकल्पित किया । भक्तों को सम्बोधित करते हुए पूज्यपाद शंकराचार्य महाराज ने कहा कि गो गंगा कृपाकांक्षी गोपालमणि का ये आन्दोलन अत्यन्त पवित्र है इसलिए इस आन्दोलन को बल देने के लिए हम इस अभियान में लगे हुए हैं गाय को दूध समझने वाले और गाय को मांस समझने वाले दोनों ही गाय के महत्व से अनभिज्ञ है , भगवद्गीता में भगवान कहते हैं कि हमारे साथ भगवान ने यज्ञ को प्रकट किया और हम परस्पर एक दूसरे के लिए बनाए गए हैं । एकबार प्रजीपति ब्रह्मा द्वारा – देवता , दैत्य और मानव निमंत्रित किए गए , तैयार होने के बाद सुन्दर व्यंजन परोस दिया गया लेकिन ब्रह्मलोक के सेवकों ने सबके हाथ में एक लम्बा डंडा रस्सी के साथ बांध दिया । दैत्यों ने भोजन का बहिष्कार कर वहां से निकल गए। देवता और मनुष्यों ने एक दूसरे का सहयोग करते हुए एक दूसरे को खिलाकर परम तृप्ति का अनुभव किया । दूसरे को खिलाने से संतुष्ट होते हैं हम भारतीय । हम अपने देवता, अतिथि और बच्चों के लिए भोजन बनाते हैं इसी को यज्ञ कहा जाता है । मंत्र और हवि के द्वारा यज्ञ होता है जिससे देवता प्रसन्न होते हैं । ब्राह्मण और गोमाता ही यज्ञ को सम्पन्न कराते हैं । बिना गाय के सारी पूजा उपासना व्यर्थ है , ३३ कोटि देवता की सेवा ही गौसेवा है । पहली रोटी हम अपने ३३कोटि देव स्वरूपा गोमाता को समर्पित करते हैं ।
महाराज दिलीप सर्वसामर्थ्यवान थे लेकिन पुत्र विहीन होने के कारण दुखी थे , गुरु वशिष्ठ के आदेश का परिपालन करते हुए ४० दिन तक अहर्निश गौसेवा की परिणाम अज नामका पुत्र हुआ उनके धर में , आगे चलकर इसी पवित्र वंश में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम नें अवतार धारण किया ।
भगवान को पाना है तो गोसेवा करो , भगवान ने कह रखा है – ‘गवां मध्ये वसाम्यहम्’ मैं सदा गायों के बीच में ही रहता हूं ।‘मातीति माता’ जो सबको अपने अन्दर समा ले वही माता है । गौमाता में सबकुछ समाहित है । ललितासहस्रनाम में भगवती को ‘गोमाता’ कहकर सम्बोधित किया गया है । गौमाता सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली देवी है, हम सनातनी केवल दूध नहीं अपितु आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए गौसेवा करते हैं । ये यात्रा कल हावडा से झारखंड प्रदेश जमशेदपुर पहुंचेगी । पांच अक्टूबर को राजधानी रांची में गोप्रतिष्ठा ध्वज स्थापित की जाएगी ।
आज के कार्यक्रम में उपस्थित रहे सर्वश्री स्वामी प्रज्ञानानन्द सरस्वती जी, स्वामी अम्बरीशानन्द सरस्वती , ब्रह्मचारी ब्रह्मविद्यानन्द , डा परमेश्वरनाथ मिश्र, यात्रा के नेतृत्वकर्ता गो गंगा कृपाकांक्षी गोपालमणि , स्वामी रामानन्द तीर्थ, स्वामी तेजेश्वरानन्द सरस्वती, यात्रा प्रभारी मुकुन्दानन्द ब्रह्मचारी, सचिव देवेन्द्र पाण्डेय, बंगाल प्रभारी निरंजन दास, प्रभु शरण दास, सर्वभूतहृदयानन्द, सर्वभूतात्मानन्द , सर्वशरण, आनन्द उपाध्याय , अरविन्द भारद्वाज, सक्षम सिॅह, गौरव कुमार, सुनील उपाध्याय आदि उपस्थित रहे।