मैं जीतूंगी, हारूंगी, रोऊंगी,चिल्लाऊंगी,
किसी दिन जोर से पटका खाऊंगी,
कई जगह लड़खड़ा जाऊंगी, गिर जाऊंगी ,
उठ नहीं पाऊंगी, हड्डियां टूट चुकी होंगी,
हिम्मत गवाही नहीं दे रही होगी ,
मंजिल दिखाई नहीं दे रही होगी
चारों चारों तरफ अंधेरा होगा
सभी दरवाजे बंद होंगे
कोई सहारा नहीं होगा,
कोई हमारा नहीं होगा
तब भी मैं खड़ी रहूंगी अकेली, अपने साथ
चाहे दुनिया की सारी विपत्तियां टूट पड़ें,
जग की सारी आपत्तियां टूट पड़ें
सब मेरे खिलाफ खड़े हों, ओढ़े
कुछ लिहाफ खड़े हों
चाहे जितनी छली जाऊं ,जग से जितनी दूर चली जाऊं
दुख साथी हो जाएं ,सुख सपने हो जाएं
आंधिया हिम्मत उड़ा कर ले जाएं
तूफान निर के दरिया बहा कर ले जाए
मेरे पास जब कुछ भी नहीं बचेगा
तब भी मैं खड़ी रहूंगी अकेली, अपने साथ
………… प्रियंका पांडय…………….