*एक बेटे ने हाल ही में दिवंगत हुई अपनी मां के लिए लिखे दो शब्द
विमल मिश्रा
स्वतंत्र पत्रकार विजन
लखीमपुर खीरी।
मेरी माँ स्वर्गीय ललिता देवी त्याग,समर्पण और ममता की प्रतिमूर्ति थीं।मोहल्ले से लेकर गांव,परिवार और रिश्तेदार सब उनके इस व्यवहार के कायल थे।मोहल्ले में जब भी किसी जरूरतमंद को मदद की दरकार हुई,उन्होंने दिल खोलकर उसकी मदद की।पूरा मोहल्ला उनमें एक अभिभावक की छवि देखता था।और तो और अगर घर का भी कोई सदस्य किसी की मदद कर देता था तो उन्हें आंतरिक खुशी और संतुष्टि मिलती थी।महज कक्षा पांच तक पढ़ी होने के बावजूद गजब की प्रबंधन क्षमता उनके भीतर थी।घर से लेकर रिश्तेदारी तक सारा मैनेजमेंट वह बखूबी करतीं थीं।घर की दैनिक जरूरतों की सारी व्यवस्था वह एडवांस में रखतीं थीं।कभी यह नौबत नहीं आयी कि आज राशन नहीं है,तेल नहीं,गैस नहीं है।उनके जीवित रहते हुए घर के बाकी सदस्य इन सब जिम्मेदारियों से मुक्त थे।गांव,समाज और रिश्तेदारियों में होने वाले मांगलिक कार्यक्रमों का ब्यौरा वह मुँहजबानी याद रखती थीं।उनके रहते हुए शायद ही कोई न्योता छूटता हो।घर को खड़ा करने में उनकी बड़ी भूमिका रही।घर मे किसी सदस्य को मामूली सा जुकाम भी हो जाये तो वह जब तक जिद कर उसे डॉक्टर के यहाँ नहीं भेज पातीं थीं,तब तक चैन की सांस नहीं लेती थीं।
यह अभिव्यक्ति जनपद लखीमपुर खीरी के वरिष्ठ पत्रकार/लेखक/कवि विमल मिश्रा द्वारा कुछ माह पूर्व अपनी दिवंगत मां के लिए की गई है।