रिपोर्ट
शशिकान्त जायसवाल स्वतंत्र पत्रकार विजन
गाजीपुर। सेवराई तहसील क्षेत्र के रेवतीपुर गांव मे नवरात्र में आस्था व विश्वास का प्रतीक रेवतीपुर गांव के मध्य में स्थित व गाजीपुर से 20 किमी की दूरी पर व पडोसी राज्य बिहार से 30 किमी दूर स्थित मां भगवती देवी का मंदिर श्रद्धालुओं के सभी मुरादों को पूरा करने के कारण पूरे क्षेत्र के मन्दिरों में सुबह से ही श्रद्धालुओं की भारी उमडती है प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में भक्त मां के दरबार में हाजिरी लगाने गाँव जिले ही नहीं अपितु पडोसी राज्य बिहार से भी लोग अपनी मुरादे पूरी करने आते रहते है।क्षेत्रीय लोगों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि मुस्लिम शासन काल में काम मिश्र व धाम मिश्र ने फत्तेहपुर सिकरी से 1707 ई.मे मां प्रतिमा स्थापित किए। ब्रिटिश हुकूमत में अकाल पड़ जाने के कारण लोगों को भूखे मरने की नौबत आ गयी थी परंतु इस दशा में भी तत्कालीन प्रशासन ने लोगों से लगान वसूलने का फरमान जारी कर दिया। इससे लोगों में हड़कंप मच गया था। तभी मां ने एक वृद्धा का रूप धारण करके पूरे गांव का लगान अंग्रेजों के पास ले जाकर चुकाया और लोगों को इस मुसीबत से छुटकारा दिलाई। किदवंतियों के अनुसार बलिबंड खां पहलवान के उपर मां का आशीर्वाद था। वह मां के अनन्य भक्त थे। उन्होने स्वप्न में मां का दर्शन भी किया था। इस तरह यह धाम समरसता व भाईचारे का भी प्रतीक है।यह मंदिर पंचतलीय होने के साथ ही अपने आप में एक वास्तविक कला का अद्भुत नमूना है। प्रत्येक तल में विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियों की नक्काशी कला देखते ही बनती है। इन मूर्तियों से अद्भूत नक्काशी कला के बारे में पता चलता है। मां की मूर्ति के पास लगे खंभो को लोगो ने उस समय यातायात सुविधाओं के अभाव के कारण अपने कंधो पर लाकर मंदिर में स्थापित किया था।नवरात्र के इन पावन दिनों में मंदिर की आकर्षक सजावट की गई। इससे मंदिर की सुंदरता देखते ही बनती है। इससे मंदिर परिसर में रौनक की छटां बराबर बिखेरती रहती है।मन्दिर का कपाट सुबह मंगला आरती होने व भोग लगने के साथ ही दर्शनार्थियों के लिए खुलता है वहीं शाम को भी कपाट बन्द होने से पहले भव्य श्रींगार किया जाता है आरती होने के उपरान्त मन्दिर का कपाट रात्रि को बन्द कर दिया जाता है यहाँ हमेशा मुण्डन, हवन पूजन आदि का कार्य अनवरत चलता रहता है क्षेत्रीय लोग अगर किसी क्षेत्र में उपलब्धि दर्ज करते है तो पहले माँ भगवती का दर्शन पूजन के उपरान्त ही अपने घरो को जाते है ।