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रामगढ़ताल की खूबसूरती बढ़ाने आए बत्तख बनते गए निवाला पहरे के बाद भी होता रहा शिकार

स्वतंत्र पत्रकार विजन
इक़बाल अहमद

जनपद गोरखपुर रामगढ़ताल को आकर्षक बनाने के लिए लाए गए एक हजार अमेरिकन सफेद बतखों की संख्या कम होती जा रही है। रख-रखाव के अभाव में और लापरवाही से अधिकतर बतखों की जान चली गई। इनकी देखभाल करने वालों का कहना है कि गर्मी की बर्दाश्त नहीं करने से इनकी मृत्यु हो गई, जबकि स्थानीय लोगों का कहना है कि बतखों का शिकार हो गया।रात में खुले में घूमने से कुत्तों ने मार डाला तो कुछ को लोग उठा ले गए। लेकिन, इसकी किसी ने कहीं शिकायत भी नहीं की है। इस समय 150 के करीब बतख बचे हैं। जिन्हें सुबह के समय नौका विहार पर टहलने आने वाले लोग तो शाम को आसपास के कुछ युवकों द्वारा खाने के लिए दाना दिया जा रहा है रामगढ़ताल पर्यटन स्थल बन चुका है। इसकी खूबसूरती बढ़ाने और यहां आए पर्यटकों को नया अहसास दिलाने के लिए दक्षिण भारत से 1000 अमेरिकन सफेद बतख के चूजे लाए गए थे। रामगढ़ताल के वाटर स्पोर्ट्स कांप्लेक्स के संचालन की जिम्मेदारी संभाल रहे मुंबई की फर्म ई-सिटी बाइस्कोप इंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड ने 600 रुपये प्रति चूजा खर्च कर इन्हें यहां मंगवाया था।गर्मी के समय में आने से करीब 300 चूजों की रास्ते में ही तो 150 के करीब यहां आने के कुछ दिनों बाद मृत्यु हो गई। इसके बाद उनकी देखभाल के लिए लगाए गए लोगों ने बतखों को यहां के मौसम के हिसाब से ढालने की कोशिश की। धीरे-धीरे ये चूजे दो महीने के हो गए। फिर उन्हें कुछ घंटों के लिए रामगढ़ताल में छोड़े जाने लगा। एक साथ ताल में घूमने का मनमोहक दृश्य देखने के लिए लोगों की भीड़ भी जुटने लगी। जैसे ही ये बतख कुछ और बड़े हुए इनकी देखभाल करने वाले युवक को हटा दिया गया। इसके बाद से ये कभी पानी में तो कभी वाटर कांप्लेक्स तक स्वछंद विचरण करने लगे। स्थानीय लोगों का कहना है कि रात के समय बतख तेज आवाज करते हुए इधर-उधर भागते थे। लोग मौके पर जाकर देखते तो कुत्ते बतखों को दौड़ाते मिलते थे। आसपास स्थित गांव के लोगों ने भी उनका शिकार किया। पशु-पक्षियों के विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिकन बतखों को लाने के लिए उनके रहने की उचित व्यवस्था होनी चाहिए थी। उनके लिए भोजन की व्यवस्था के साथ रात के समय वह बाहर न घूमे, इसके लिए एक सुरक्षित स्थान होना चाहिए था। जो चारों तरफ से बंद हो। विशेषज्ञों ने कहा कि इसी प्रजाति से मिलते-जुलते बतख चिड़ियाघर में भी हैं। उचित व्यवस्था होने से वह सुरक्षित हैं। तारामंडल के भगत चौराहा निवासी आदित्य सिंह ने बताया कि बतखों को वह भोजन कराते हैं। रात के समय वह अपने साथियों के साथ वहां पहुंचते हैं और उबला चावल खाने के लिए उन्हें देते हैं। आदित्य ने बताया कि वह एनिमल वेलफेयर नाम से संस्था चलाते है। इसके माध्यम से वह सड़क पर घूमने वाले बेजुबानों की सेवा करते हैं और उन्हें भोजन कराते हैं। वाटर स्पोर्ट्स का संचालन देख रहे आशीष शाही ने बताया कि यहां के मौसम की वजह से कुछ बतखों की मृत्यु हो गई। बड़े होने पर ये रामगढ़ताल में घूमने लगे। झुंड में होने से गिनती नहीं हो सकी। लेकिन, लगातार संख्या में कमी को देखकर पता लगाने के लिए एक वीचर रखा गया। इसके बाद पता चला कि आसपास स्थित गांव के लोग बतखों का शिकार कर रहे हैं। एक लड़के को चार बतख के साथ पकड़ा गया था। तत्कालीन एसपी सिटी कृष्ण कुमार बिश्नोई से शिकायत करने पर पुलिस ने सख्ती की थी। इस समय 200 के करीब बतख बचे हैं,जो रामगढ़ताल से लेकर जेट्टी पर रहते हैं। भोजन के रूप में वह ताल की मछलियों को खाते हैं। यहां आने वाले लोग भी उन्हें खिलाते रहते हैं। वन विभाग के उपवनाधिकारी डा.हरेंद्र सिंह ने बताया कि बतखों के शिकार होने की किसी ने शिकायत नहीं की है। वह क्षेत्र जीडीए के अधीन है। अगर कोई शिकायत करता है तो जांच कर साक्ष्य और सबूतों के आधार पर कार्रवाई की जाएगी।

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