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मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय गोरखपुर में हुआ भारतीय ज्ञान परंपरा पर एकदिवसीय विमर्श

स्वयं शाही
स्वतंत्र पत्रकार विज़न

जनपद गोरखपुर मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, गोरखपुर तथा भारतीय शिक्षण मंडल – युवा आयाम, गोरक्ष प्रांत के संयुक्त तत्वावधान में विश्वविद्यालय के आर्यभट्ट सभागार में प्रांत स्तरीय शोधार्थी सम्मेलन/ विविभा प्रमाण पत्र वितरण समारोह सहित ‘भारतीय ज्ञान परंपरा का विकसित भारत में योगदान’ विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो पूनम टंडन उपस्थित रहीं, जबकि राष्ट्रीय संगोष्ठी के सारस्वत वक्ता के रूप में भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय संगठन मंत्री बी आर शंकरानन्द जी उपस्थित रहे। विशिष्ट अतिथि के रूप में गोरक्ष प्रांत के सह प्रचारक श्री सुरजीत जी की उपस्थिति रही। संगोष्ठी की अध्यक्षता मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. जे.पी.सैनी जी ने की। मुख्य अतिथि के रूप में कार्यक्रम को संबोधित करते हुए दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो पूनम टंडन ने कहा इस कार्यक्रम के आयोजकों का प्रयास सराहनीय है कि वे नई पीढ़ी को भारतीय ज्ञान की तरफ उन्मुख कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान में भारत विश्व के लगभग सभी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।यह उसके प्राचीन ज्ञान और गौरव की वजह से ही संभव हो रहा है। उन्होंने कहा कि आवश्यकता इस बात की है कि आप अपनी जड़ों से जुड़े रहें। जड़ों से जुड़े लोग और समुदाय ही सुखी और समृद्ध होते हैं। उन्होंने समृद्ध भारतीय परंपरा की चर्चा करते हुए कहा कि सभ्यता के विकास में भारत का अमूल्य योगदान रहा है तथा विज्ञान, कला, साहित्य आदि की विभिन्न विधाओं का उद्भव भारत से ही हुआ है। अपने सारस्वत वक्तव्य में भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय संगठन मंत्री. बी आर शंकरानन्द जी ने कहा कि हम सभी भाग्यशाली हैं क्योंकि हम भारत, जिसे त्याग और वैराग्य के लिए जाना जाता है, वहां जी रहे हैं। विशेषकर गुरु गोरक्षनाथ की पावन तपोभूमि पर होना भी सौभाग्य का सूचक है। उन्होंने कहा कि प्रयोग में समय समय पर सुधार करने से पद्धति विकसित होती है, पद्धति में सुधार से परंपरा, और परंपरा में सुधार से संस्कृति विकसित होती है। उन्होंने कहा कि भारत की संस्कृति कभी मरी नहीं, और कभी मरेगी भी नहीं क्योंकि वह मृत्युंजय है। उन्होंने कहा कि निस्वार्थ भाव से मनुष्यमात्र के विषय में सोचने व कार्य करने की सोच विकसित करती है भारत की संस्कृति। उन्होंने भक्ति का महत्व रेखांकित करते हुए कहा कि भक्ति हीन ज्ञान अहंकार की तरफ ले जाता है और भक्ति हीन कर्म भोगवाद की तरफ ले जाता है। भक्तियुक्त कर्म ही तप होता है। यह विडंबना है कि आधुनिक शिक्षण पद्धति में विद्यार्थियों को स्वार्थी बनाने का उपक्रम चल रहा है, जो चिंतनीय है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति का भक्त नहीं भारत का भक्त बनना है। भारत की भक्ति रोम रोम में प्रस्फुटित होगी तो हम सभी भारत के शिल्पकार बन जाएंगे। एक समूह या कुछ लोगों के बल पर भारत को विश्वगुरु नहीं बनाया जा सकता है। प्रत्येक देशवासी का सहयोग और समर्पण आवश्यक है। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए गोरक्ष प्रांत के सह प्रचारक श्री सुरजीत जी ने कहा कि भारत का अर्थ ही है ज्ञान में रत होना। ज्ञान के आधार पर स्वयं श्रेष्ठ बनना और पूरे विश्व को श्रेष्ठ बनाना ही भारत का लक्ष्य रहा है। ज्ञान के सभी क्षेत्रों में भारत अग्रणी रहा है। आज की पीढ़ी को भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा को पुनः प्रतिष्ठित करने की दिशा में कार्य करना है। उन्होंने कहा कि हमें अतीत के गौरव को समझना होगा, भारत के मूल्य को समझना होगा। आज की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए उसके अनुरूप स्वयं को ढालना पड़ेगा, उसके अनुसार कार्य करना पड़ेगा। भारत का भविष्य हम सभी को मिलकर तय करना पड़ेगा। ज्ञान अर्जन देश के लिए होना चाहिए। एम एम एम यू टी के कुलपति प्रो.जे पी.सैनी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन की शुरुआत एक गीत से की। उन्होंने कहा वक्त है कम लंबी मंजिल,तुम्हें तेज कदम चलना होगा,हे परम तपस्या के पथिकों, तुम्हे नूतन पथ रचना होगा। उन्होंने कहा कि वर्ष 2047 तक विकसित भारत बनाने के लक्ष्य के लिए अब हमारे पास बहुत कम समय है बचा है। हमें विशेषकर युवा पीढ़ी को तन्मयता से कार्य करना होगा। प्राचीन भारत ज्ञान संपन्न था। आवश्यकता है उसके पुनरोत्थान की, नई पीढ़ी से उसका परिचय कराने की। इन्हीं उद्देश्यों को साकार करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय शिक्षा नीति का प्रावधान किया गया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति स्वामी विवेकानंद के विचारों पर आधारित है और विकसित भारत के लक्ष्य में सहायक होगी।कार्यक्रम के आरंभ में अतिथियों ने भारत माता, मां सरस्वती,और पंडित मालवीय के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की और दीप प्रज्ज्वलन किया। मंतशा बानो ने संगठन गीत प्रस्तुत किया। भारतीय शिक्षण मंडल के ध्येय श्लोक की प्रस्तुति विवेक पांडेय ने की जबकि ध्येय वाक्य डॉ ममता शाही ने प्रस्तुत किया। अतिथियों का परिचय प्रो कौस्तुभ नारायण मिश्र ने प्रस्तुत किया जबकि भारतीय शिक्षण मंडल, युवा आयाम और विविभा का परिचय डॉ जितेन्द्र कुमार मिश्र ने प्रस्तुत किया। एकल गीत डॉ प्रभाकर तिवारी ने प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ प्रीति त्रिपाठी ने किया जबकि आभार ज्ञापन प्रो राकेश कुमार ने किया। प्रार्थना और कल्याण मंत्र सुश्री ऋचा द्वारा प्रस्तुत किया गया। इस अवसर पर दीपशिखा शर्मा, रामजी त्रिपाठी, सौरभ मिश्र, एवं वरुण कुमार सिंह द्वारा अपने शोध पत्रों का प्रस्तुतिकरण किया गया। संगोष्ठी के दौरान विभिन्न विषयों जैसे कि भारतीय ज्ञान परंपरा का इतिहास और समृद्धि, आधुनिक समस्याओं के समाधान में भारतीय ज्ञान की भूमिका, तथा भारतीय ज्ञान परंपरा और विकसित भारत आदि विषयों पर मंथन हुआ। इस अवसर पर गोरक्ष प्रांत स्तर पर चयनित किए गए 49 शोध पत्रों में से 4 श्रेणियों क्रमशः स्नातक, परास्नातक, शोध छात्र, तथा 30 वर्ष से कम आयु के अन्य व्यक्तियों की श्रेणी में से प्रत्येक श्रेणी के तीन तीन श्रेष्ठ शोध पत्र लेखकों पुरस्कृत भी किया गया। साथ ही शोध पत्रों का प्रांत स्तर पर मूल्यांकन करने वाले विद्वानों को भी सम्मानित किया गया। और सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र वितरित किए गए। कार्यक्रम के आयोजन में प्रो डी के द्विवेदी, प्रदीप सिंह, डॉ प्रदीप मुले, डॉ देवेश कुमार, डॉ उग्रसेन, डॉ प्रदत्त भारती, उपेन्द्र नाथ सिंह, अंजनी कुमार सिंह, सिद्धेश्वर, प्रो अर्जुन मिश्र, प्रो शोभा गौड़, अशोक कुमार शुक्ल, प्रो ममता मणि आदि की महत्वपूर्ण भूमिका रही।

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