ये कैसे जनाजों के घर बना रहे हो
आदमी तोड़कर पत्थर बना रहे हो
फिजूल वाहियात मतलबों के चक्कर में
कितने जज्बातों को खंडहर बना रहे हो
छोटी छोटी खुशियों से धड़क उड़ता था
क्यों मासूम से दिल को कट्टर बना रहे हो
या तो जिस्म या तो जाओ जाना
शायद नई आशिकी की लहर बना रहे हो
हमारे यहां रसोईं जुठारी ही नहीं जाती
तुम्हारा अच्छा है,जायका चखकर बना रहे हो।
प्रियंका पांडे